किन्नौर आज देशभर में एक प्रख्यात सेब उत्पादित एवं पर्यटक क्षेत्र के रूप में उभर कर आया। किसी आम पर्यटक मेरा भी किन्नौर परिचय सांगला, छितकुल, चिने (कल्पा) से पीती घाटी के भ्रमण के दौरान हुआ ।

मेरी सर्व प्रथम लाहुल यात्रा (२०१९) से ही मुझे घुमक्कड़ी का का कीड़ा लग गया और मेरे घूमने बिल्कुल विपरीत । दूर–दराज के हिमालय क्षेत्रों से लगाव और आम पर्यटक स्थलों से दूर भागना मेरे लिए आम बात हो चुकी थी।

अब आते इस ब्लॉग के असल मुद्दे पर। यह कहानी है, किन्नौर की मोनशिरस गुट (मेशूर) के देवी देवताओं के उत्पत्ति की है।  हीरिमा को बाणासुर ने किसी धार पर रोक लिया और राक्षस विवाह कर लिया। बाणासुर और हीरिमा के १८ पुत्र पुत्रियां हुई जनम गोरबोरंग नामक स्थान पर एक गुफा में हुआ।

इनमें ७ भाई–बहनों को देवी देवताओं का दर्जा मिल गया। अब आप सोच रहे होंगे क्यों और कैसे तो इसका उत्तर फिलहाल तो मेरे पास भी नहीं है, नाही अबतक पढ़ी किताबों में मिला।

पर आगे बढ़ते हुए, जब यह बड़े होगए तो इन्होंने निर्णय लिया कि आपस में किन्नौर की भिन्न भिन्न क्षेत्र का बटवारा करेंगे। सबसे बड़ी चंडिका ने इसकी बंटवारे की ज़िम्मेदारी ली और चालाकी भी की।

किन्नौर का सबसे सुंदर और उपजाऊ माने जाने वाले सायराग (कल्पा, तेलंगी, ख्वांगी, युवारिंगी, कोठी, ब्रेलेंगी, रोगी, कोशमे) क्षेत्र चंडिका ने अपने बालों में छुपा लिया और अपने लिए असल रूप में रोपा रख लिया।

एक मेशूर को सुंगरा वाला क्षेत्र दे दिया तो उनका नाम ग्रॉस मोनशिरस। दूसरे को वांग का क्षेत्र सौंप दिया तो वह वांग मोनशिरस कहलाने लगे। तीसरे को चगांव का क्षेत्र दे दिया। एक बहने को नालचे (नीचार) का इलाका दे दिया जिनका नाम ऊषा देवी है। पिता बाणासुर को कोई भी इलाका बटवारे में प्राप्त नहीं हुआ।

इसी तरह किन्नौर के कई सारे इलाकों का बटवारा सम्पन्न हुआ। माना जाता है कि यह बटवारा वांगतु के ऊपर नमक स्थान पर हुआ।

सायराग में उन दिनों एक दुष्ट ठाकुर का राज हुआ करता। जिसको हराने में चंडिका को बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा और अंत में उसे अपने भाई की सहायता लेनी ही पड़ी। ऐसी मान्यता है कि थोलंग मोनशिरस ने चंडिका को बाणासुर का त्रिशूल दिया और उसी से चंडिका ने ठाकुर को मार गिराया। इसकी कहानी भी किसी और ब्लॉग में सुनाऊंगा ।

मैंने २०२२ की मेरी किन्नौर यात्रा की दौरान वांग मोनशिरस (कटगांव), चंडिका (कोष्टम्पी), थोलंग मोनशिरस (चगांव) के मंदिर देखें। २०२५ की यात्रा में ग्रॉस मोनशिरस और ऊषा देवी के मंदिर देखने का मौका मिला। सब में एक बात मिलती जुलती है। सभी कि भव्यता, उच्च दर्जे की लकड़ी की नक्काशी।